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किस तरह कमर-तोड़ महंगायी से जूझ रहा हूँ मैं
वो क्या जाने ये सवाल किस तरह बूझ रहा हूँ मैं ।
कितना बेबस हूँ सब्जियों के दाम पूछ रहा हूँ मैं,
पेट्रोल और श्रृंगार से हमेशां कनफ्यूस रहा हूँ मैं ।
कितना बेवक़ूफ़ हूँ यूँ ही कर्जों में डूब रहा हूँ मैं,
ये जानते हुए, सच्चायी से ही महफूज़ रहा हूँ मैं।
______________________हर्ष महाजन
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